लेखिका- नविता ठाकुर(निश्छल)
जब हृदय प्रज्वलित हो एक आग,
तब मिल गाये कंठ-कंठ एक राग।
माँ के सब संतान जब जायेंगे जाग,
तब लौट आयेगा माँ का सुख-सुहाग।।
कुछ जागे हैं अभी कुछ को जगाना है,
कुछ लोगों के हृदय में प्रेम उपजाना है।
धन-धान्य हीरे-मोती माँ का खजाना है,
माँ के आँचल तले हम सबको समाना है।।
जाति विभेद में हृदय कल्पित,
धर्म विभेद में मन है कुंठित।
हृदय में प्रेम का हवा लगायें,
प्रेम के मलहम से घाव छुरावें।।
हृदय प्रसन्न होकर खिल जायेगा,
प्रेम धारा हृदय को भिंगो पायेगा।
मातृ धरा पर जब प्रेम-प्रवाह बहेगा,
मातृ- हृदय मे तब ही फूल खिलेगा।।
मस्तक माँ का तब चमकेगा,
हृदय में एकता जब उपजेगा।
जाति -भेद का अकड़ हटाये,
धर्म-विभेद का जकड़ छुड़ाये।।
माँ हृदय में होता एक ही घर,
प्रेम उपजता जहाँ हर पहर।
झूठ-सच का माँ को है खबर,
पाँव पसारे हम सम्हल कर।।
जब हृदय प्रज्वलित हो एक आग,
तब मिल गायें कंठ-कंठ एक राग।
माँ के सब संतान जब जायेंगे जाग,
तब लौटेगा मातृभूमि का सुख-सुहाग।।