तेजस ने पहली बार रात में अरेस्टेड लैंड का सफलतापूर्वक किया परीक्षण


नई दिल्ली. देश में बने लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एलसीए) तेजस ने रात में अरेस्टेड लैंडिंग का परीक्षण सफलतापूर्वक पूरा किया। रक्षा अनुसंधान विकास संगठन (डीआरडीओ) ने मंगलवार को इसका परीक्षण किया। डीआरडीओ ने ट्वीट किया, “नेवी वेरिएंट के एलसीए तेजस का गो‌वा में आईएनएस हंसा के तटीय टेस्ट फैसिलिटी में पहली बार 12 नवम्बर को रात के समय अरेस्टेड लैंडिंग कराया गया। इससे अरेस्टेड लैंडिंग टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में आत्मविश्वास बढ़ेगा। रक्षामंत्री ने डीआरडीओ, भारतीय नौसेना और एचएएल को इस उपलब्धि के लिए बधाई दी।”


डीआरडीओ ने दो महीने पहले ही दो सीट वाले एलसीए तेजस का गोवा के आईएनएस हंसा में पहली बार अरेस्टेड लैंडिंग कराई गई थी। एजेंसी ने बताया था कि यह टेक्स्टबुक लैंडिंग था। डीआरडीओ सूत्रों ने बताया, “एक सामान्य एलसीए को टेक-ऑफ और लैंडिंग करने के लिए लगभग एक किलो मीटर के रनवे की जरूरत होती है। लेकिन, नेवल वैरिएंट के लिए, टेक-ऑफ के लिए लगभग 200 मी. और लैंडिंग के लिए 100 मी. की आवश्यकता होती है। आज तेजस ने रात के समय अरेस्टेड लैंडिंग की उपलब्धि को सफलतापूर्वक हासिल किया।” 


तेजस ने एक ही उड़ान में टेकऑफ और लैंडिंग का परीक्षण पास किया था


इससे पहले, तेजस ने 13 सितंबर को नौसेना में शामिल होने के लिए एक बड़ा परीक्षण सफलतापूर्वक पूरा किया था। डीआरडीओ और एयरोनॉटिकल डेवलपमेंट एजेंसी के अधिकारियों ने गोवा की तटीय टेस्ट फैसिलिटी में तेजस की अरेस्टेड लैंडिंग कराई थी। तेजस यह मुकाम पाने वाला देश का पहला एयरक्राफ्ट बन गया था। इसके बाद, 1 अक्टूबर को तेजस ने एक ही उड़ान में टेकऑफ और लैंडिंग का अहम परीक्षण पास किया था। इस लड़ाकू विमान को हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) और एयरोनॉटिकल डेवलपमेंट एजेंसी ने डिजाइन और विकसित किया है। तेजस भारतीय वायुसेना की 45वीं स्क्वाड्रन 'फ्लाइंग ड्रैगर्स' का हिस्सा है।


क्या है अरेस्टेड लैंडिंग? 
नौसेना में शामिल किए जाने विमानों के लिए दो चीजें सबसे जरूरी होती हैं। इनमें एक है उनका हल्कापन और दूसरा अरेस्टेड लैंडिंग। कई मौकों पर नेवी के विमानों को युद्धपोत पर लैंड करना होता है। चूंकि, युद्धपोत एक निश्चित भार ही उठा सकता है, इसलिए विमानों का हल्का होना जरूरी है। इसके अलावा आमतौर पर युद्धपोत पर बने रनवे की लंबाई निश्चित होती है। ऐसे में फाइटर प्लेन्स को लैंडिंग के दौरान रफ्तार कम करते हुए, छोटे रनवे में जल्दी रुकना पड़ता है। यहां पर फाइटर प्लेन्स को रोकने में अरेस्टेड लैंडिंग काम आती है।