हिय सारद रूप बसै हमरे, नित ही नव मंगलचार करै,
सिसु तौ जननी नहिं जानि सकै, किहि भाँति भला मनुहार करै।
सुत मातु चहै ममता तुमसे, बस एक यहै अनुहार करै;
कविता - सविता जग - जीवन मां, सुचि भावन का उजियार करै।।
सारद सीस झुका पद-पंकज माँगिति हौं वर हे वरदानी,
सूर-कबीर यथा तुलसी-रसखान लिखी कविता मनमानी।
चाह यहै हमरे मन मां वहि भाँति लिखौं कछु गेय-कहानी;
लेखनि लेख लिखै सुभ मंगल आइ बसौ उर बीच भवानी।।