कविता : नाजुक सी कोमल :लेखिका- ओम सिंह  (लखनऊ)


लेखिका- ओम सिंह  (लखनऊ)


नाजुक सी कोमल

अनछुई- अनकही

नर्म मुलायम कोपलें।

       

आवरण को तोड़ कर

बाहर निकलने की फिराक में

गर्मी की तपती दोपहरी में

बारिश की बूंदों से तर होने

तार - तार भीग जाने की

प्यास लिए।

 

हौसले बुलंद

साहस फौलादी

जुनून ओ जोश   

हर दम।

       

बढ़ गई कोपलें

बन गई नई डालें

मनभावन फूल,

मीठे रसीले फल

सुकून देती ठंडी छांव।

 

चारों ओर सारे जहां में

फैलाती अपनी खुशबू

सुरमई कंठ में गाते पंछियों को

देती बसेरा।

         

हर बार... हां.. हर बार

एक और नए सृजन को

अपने आगोश में समेटती

सुंदर नाजुक कोमल कोपलें