रचनाकार-राज कुमार तिवारी (महोली - सीतापुर ) उ.प्र.
आगत कभी नहीं टलता होनी को होकर रहना है।
जीवन दरिया संघर्षों का हमको इसमें बहना है।।
सुख - दुख आएंगे - जाएंगे धूप कभी तो छाँव कभी,
जीत - हार का चक्र चलेगा बाजी पलटेंगे दाँव कभी।
हों विपरीत भले परिवर्तन हँसकर उनको सहना है।।
अपने पराए बन जाएं पल - पल बदले यह संसार,
कहीं जश्न खुशी के होंगे कहीं मचेगी चीख - पुकार।
भला - बुरा जो भी मिल जाए स्वागत - स्वागत कहना है।।
गुणियों की गाथाएं गुन लो विजयी-जन की कथा पढ़ो,
असफलता यह सबक सिखाती फिर आगे की ओर बढ़ो।
रक्तार्चन करने वालों ने हार विजय का पहना है।।
नेक इरादे होते पूरे सद् - संकल्प फला करते,
लक्ष्य सदा उनको मिलता जो पथ पर सतत चला करते।
सावन बरसा उस धरती पर जाना जिसने दहना है।।