लेखिका- विनीता मिश्रा ( लखनऊ)
फिर वही द्रौपदी की पुकार ,
निर्भया की फिर से चीत्कार ,
कर रही गुहार ,
कैसा यह संसार ,
कैसा यह संसार ||
सोने जैसे शहरों में,
लड़की को बिकते देखा।
मर्यादा की बेटी को,
गिद्धों से घिरते देखा,
राम न जाने कहां गए ?
सारे शुंभ - निशुंभ भए ||
कर पाएगी दुर्गा कब ,
इन सब दुष्टों का संहार,
भान हुआ है ऐसा कुछ,
नहीं रुकेगी तब तक ये,
जब तलक नहीं नपुंसक होगा,
करता जाएगा बलात्कार ||
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