एटा। आयोध्या में भगवान श्रीराम की जन्मभूमि पर मंदिर के निर्माण का रास्ता साफ करने के बाद, सरकार जहां ट्रस्ट बनाने में जुट गई है, वहीं श्रद्धालु भी अपने-अपने स्तर पर तैयारियों में जुटे हैं। अयोध्या में बनने वाले राम मंदिर में 2100 किलो का विशाल घंटा वाराणसी की एक फर्म लगवाना चाहती है। यह घंटा घूंघरू-घंटी नगरी के नाम से मशहूर जलेसर में बन रहा है। इस घंटे की कीमत करीब दस लाख रुपए आंकी जा रही है। 50 कारीगर मिलकर इसे दो से ढाई माह में तैयार कर लेंगे।
राम मंदिर के लिए 2100 किलो का एक घंटा 6 फुट ऊंचा और 5 फुट चौड़ा होगा। 10 अन्य अलग-अलग भार वाले घंटे बनाने का आर्डर जलेसर एटा की फर्म सावित्री ट्रेडर्स को मिला है। इस फर्म के मालिक व जलेसर नगर पालिका के चेयरमैन विकास मित्तल ने बताया कि, उन्हें ये आर्डर देश भर के बड़े मंदिरों में घंटे की सप्लाई करने वाली वाराणसी की फर्म श्याम सुंदर ट्रेडर्स ने यह कहकर दिया है कि, घंटा अयोध्या में बनने वाले राम मंदिर में लगेगा।
विकास मित्तल ने कहा- एक घंटा 2100 किलो का और 10 छोटे 500, 250, 100 किलो के घंटे बनाने का आर्डर मिला है। इनका निर्माण शुरू कर दिया गया है। सबसे ज्यादा वजनी घंटे का नमूना और सांचा तैयार हो चुका है। ये पीतल और अन्य धातुओं को मिलाकर बनाया जाएगा। बताया- एक घंटा बनाने के लिए सबसे पहले उसका सांचा बनाना पड़ता है। ये लकड़ी और एल्यूमीनियम का बनाया जाता है। इसके बाद मिट्टी तैयार करनी पड़ती है। जलेसर की मिट्टी में वो खनक और खुशबू है जो कहीं भी नहीं मिलती।
राम मंदिर में लगने वाले घंटों को बनाने के लिए दिल्ली से कारीगर इकबाल, बुर्रा, शमशुद्दीन और मुख्य कारीगर दाऊ दयाल जलेसर पहुंचे हैं। इन कारीगारों की कई पीढ़ियां इस कारोबार में रही है। विकास मित्तल ने बताया- इन घंटो में एटा की घुंघरू घंटी नगरी जलेसर और निर्माता फैक्ट्री का नाम भी लिखा जाएगा, जिससे इस नगरी की पहचान पूरी दुनिया में होगी।
एटा का जलेसर पूरी दुनिया मे घुंघरू और घंटी उद्योग के लिए प्रसिद्ध है। यहां परंपरागत कोयले की भट्टियों और फर्मों से मिट्टी के सांचे से घंटे बनाए जाते हैं। विकास मित्तल बताते हैं- इससे पूर्व भी इनकी फैक्ट्री में बने घंटे देश के कई प्रसिद्ध मंदिरों में लगे हुए हैं। कटप्पा मंदिर, चार धाम मंदिर, बड़ा हनुमान जी मंदिर भिंड, राजस्थान के हनुमान गढ़ में शनिदेव मंदिर और उत्तर भारत के कई मंदिरों के घंटे इनकी फैक्ट्री के ही बने हैं। जलेसर के घुंघरू कई फिल्मों में भी फिल्माए गए हैं।