लेखिका- पूनम हिम्मत अद्वितीय
वे स्वप्न सुनहरे गढ़ते मन में,
जो आंख मूंद शैया में पड़े,
नहीं कीर्ति यूं मिल पाएगी,
जब तक शाख कर्म कि न हिले।
आह्वाहन करती है यह शस्य श्यामला माटी,
भर दो अंगार, चीर तुम दुश्मन की छाती ,
विषधर जो फन काढ़े ,
धर हस्त से मुट्ठी प्रहार करो ,
तुम कुचलो उसके फन को ,
नहीं तनिक विचार करो ।
कर दो गर्जन फिर सिंह समान,
ध्वनि विश्व पटल में छा जाए ,
रखता हो जो कुविचार हृदय में,
वह देश थर्रा जाए ।
घर में रहकर जो षड्यंत्र करें ,
या घुस बाहर का शांति भंग करे,
उस नीच को खींच ,पग शीश धरो ,
श्वेत कबूतर के पंखों में,
खुलकर अब तुम रक्त भरो ।
दृष्टिहीन कर दो उसको ,
जो अपनी दृष्टि को वक्र करें,
बहुत हो गई सीधी चुप्पी ,
अब समूल उसे नष्ट करें।